15-12-08  ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

‘‘एक राज्य एक धर्म लॉ एण्ड आर्डर की स्थापना के समय स्वयं का परिवर्तन कर विश्व परिवर्तक बनो’’

आज बापदादा अपने चारों ओर के राजदुलारे बच्चों को देख रहे हैं। यह परमात्म दुलार कोटों में कोई को प्राप्त होता है। परमात्म दुलार में बापदादा ने हर एक बच्चे को तीन तख्त का मालिक बनाया है। पहला स्वराज्य अधिकार का भ्रकुटी का तख्त दूसरा बापदादा का दिलतख्त और तीसरा है विश्व के राज्य अधिकार का तख्त यह तीन तख्त बाप ने अपने स्नेही दुलारे बच्चों को दिया है। तो यह तीनों तख्त सदा स्मृति में रहने से हर एक बच्चे को रूहानी नशा रहता है। तो सभी बच्चे बाप द्वारा प्राप्त वर्से को देख खुशी में रहते हैं ना! दिल में स्वत: यह गीत बजता ही रहता है वाह बाबा वाह! और वाह मेरा भाग्य वाह! जो स्वप्न में भी नहीं था वह प्रैक्टिकल जीवन में मिल गया। तख्त के साथसाथ बापदादा ने इस संगम पर डबल ताज द्वारा उड़ती कला का अनुभवी भी बनाया है।

तो बापदादा चारों ओर के बच्चों की यह डबल ताजधारी प्युरिटी की रॉयल्टी, डबल ताजधारी देख रहे हैं। बापदादा ने आज चारों ओर के बच्चों के पुरूषार्थ की रफ्तार को चेक किया क्योंकि समय की रफ्तार को तो आप सभी भी देख और जान रहे हो। तो बापदादा देख रहे थे कि जो हर एक को बाप द्वारा राज-भाग का वर्सा मिला है, अपने राज्य का, फ्युचर प्राप्ति का, तो फ्युचर में जो आप सबके संस्कार नैचुरल और नेचर होगी वह अब से बहुतकाल के संस्कार अनुभव होने चाहिए क्योंकि यह नया संसार आप सबके नये संस्कार द्वारा ही नया संसार बन रहा है। तो जो नये संसार की विशेषतायें हैं उसको भी अनुभव तो करते हो ना। हमारे राज्य में क्या होगा, नशा है ना। दिल कहती है ना कि हमारा राज्य, हमारा नया संसार आया कि आया। तो बापदादा देख रहे थे नये संसार की जो विशेषतायें हैं वह बच्चों में पुरूषार्थी जीवन में कहाँ तक इमर्ज हैं! जानते तो हो, कि नये संस्कार और नया संसार की विशेषतायें क्या होंगी। सभी की बुद्धि में नये संसार की विशेषतायें इमर्ज हैं ना! जानते हो ना! गाते भी हो, जानते भी हो, पहली विशेषता, चेक करना एक-एक विशेषता मेरे में कहाँ तक इमर्ज है? मुख्य विशेषता है - एक राज्य, तो जैसे वहाँ एक राज्य स्वत: ही होता है, दूसरा कोई राज्य नहीं, ऐसे अपने संगम की जीवन में देखो कि आपके जीवन में भी एक राज्य है? कि कभी-कभी दूसरा राज्य भी होता है? अगर चलते-चलते स्व के राज्य के साथ-साथ माया का भी राज्य चलता है तो क्या एक राज्य के संस्कार होंगे? एक राज्य से दूसरा भी राज्य तो नहीं चलता? परमात्मा की श्रीमत का राज्य है या कभी कभी माया का भी दबाव है? दिल में माया का राज्य तो नहीं होता? तो यह चेक करो। इस बातों से अपने चार्ट को चेक करो। अभी संगम पर एक परमात्मा का राज्य है या माया का भी दबाव हो जाता है? चेक किया? अभी अभी चेक करो, चार्ट तो देखते रहते हो ना अपना। तो अगर अभी तक भी दो राज्य है तो एक राज्य के अधिकारी कैसे बनेंगे? क्या श्रीमत के साथ माया की मत भी मिक्स हो जाती है क्या? ऐसे ही एक धर्म - एक राज्य भी होगा तो एक धर्म भी होगा। धर्म अर्थात् धारणा। तो आपकी विशेष धारणा कौन सी है? पवित्रता की धारणा। तो चेक करो - सदा मन, वचन, कर्म, सम्बन्ध-सम्पर्क में सम्पूर्ण और सदा पवित्रता की नेचर नैचुरल बनी है? जैसे वहाँ अपने राज्य में पवित्रता का स्वधर्म स्वत: ही होगा, ऐसे ही इस समय पवित्रता की धारणा नैचुरल और नेचर बन गई है? क्योंकि जानते हो कि आपका अनादि स्वरूप और आदि स्वरूप पवित्रता है। तो चेक करो - कि एक धर्म अर्थात् पवित्रता नैचुरल है? जो नेचर होती है वह न चाहते भी काम कर लेती है क्योंकि कई बच्चे जब रूहरिहान करते हैं तो क्या कहते हैं? बहुत मीठी-मीठी बातें करते हैं, कहते हैं चाहता नहीं हूँ, चाहती नहीं हूँ, लेकिन कभी मन्सा में, कभी वाचा में कोई न कोई अपवित्रता का अंश इमर्ज हो जाता है? संस्कार बहुत जन्मों का है ना इसीलिए हो जाता है। तो एक धर्म का अर्थ है पवित्रता की धारणा नेचर और नैचुरल हो। चाहे वाणी में भी आवेश आ जाता है, कहते हैं क्रोध नहीं था थोड़ा सा आवेश आ गया। तो आवेश क्या है? क्रोध का ही तो बच्चा है। तो एक धर्म के संस्कार कब नैचुरल बनेंगे? तो चेक करो लेकिन चेक के साथ बाप द्वारा मिली हुई शक्तियों द्वारा चेन्ज करो। अभी फिर भी बापदादा पहले से ही अटेन्शन खिंचवा रहे हैं कि अभी फिर भी चेक करके चेन्ज करने का तीव्र पुरूषार्थ करेंगे तो मार्जिन है लेकिन कुछ समय के बाद अचानक टूलेट का बोर्ड लगना ही है। फिर नहीं कहना कि बाबा ने तो बताया ही नहीं। इसलिए अभी पुरूषार्थ का समय तो गया लेकिन तीव्र पुरूषार्थ का समय अभी भी है तो चेक करो लेकिन सिर्फ चेक नहीं करना, चेन्ज करो साथ में। कई चेक करते हैं लेकिन चेन्ज करने की शक्ति नहीं है। चेक और चेन्ज दोनों साथ-साथ होना चाहिए क्योंकि आप सबका स्वमान वा आप सबकी महिमा क्या है? टाइटिल क्या है? मास्टर सर्वशक्तिवान। है, मास्टर सर्वशक्तिवान है या शक्तिवान है? जो कहते हैं मास्टर सर्वशक्तिवान हैं, वह हाथ उठाओ। अच्छा। तो मास्टर सर्वशक्तिवान मुबारक हो लेकिन मास्टर सर्वशक्तिवान और चेन्ज नहीं कर सकें तो क्या कहा जायेगा? अपने ही संस्कार को, नेचर को परिवर्तन करने चाहे भी और नहीं कर सके तो क्या कहेंगे? अपने से पूछो मास्टर शक्तिवान, या मास्टर सर्वशक्तिवान? मास्टर सर्वशक्तिवान ने संकल्प किया - करना ही है और हुआ पड़ा है। होगा देखेंगे.... यह होता नहीं है। तो अभी समय के प्रमाण रिजल्ट यह होनी है कि जो सोचा तो संकल्प और स्वरूप बनना साथसाथ हो।

अभी नया वर्ष, अव्यक्त वर्ष आने वाला ही है। 40 वर्ष अव्यक्त पालना का हो रहा है। तो अव्यक्ति पालना और व्यक्त रूप की पालना को 72 वर्ष हो चुके हैं। तो क्या दोनों बाप की पालना का रिटर्न बापदादा को नहीं देंगे! सोचो - पालना क्या और प्रैक्टिकल क्या है? बापदादा ने देखा अभी भी अलबेलापन और रॉयल आलस्य, रॉयल आलस्य है - हो जायेगा, बन ही जायेंगे, पहुंच ही जायेंगे और अलबेलापन है कर तो रहे हैं, तो तो.. यह तो होना ही है, यह तो करना ही है, कहने और करने में अन्तर हो जाता है। बापदादा एक दृश्य देख करके मुस्कराता रहता है कि क्या कहते? यह हो जाये ना, यह कर लो ना, तो बहुत अच्छा मैं आगे बढ़ सकता हूँ। दूसरे को बदलने की वृत्ति रहती है लेकिन स्व परिवर्तन की वृत्ति कहाँ कहाँ कम हो जाती है। अभी दूसरे को देखना यह वृत्ति चेन्ज करो। अगर देखना है तो विशेषता देखो, यह तो होता ही है, यह तो चलता ही है, यह भी तो करते हैं... यह भावना कम करो। अपने को देखो, बाप को सामने रखो, बाकी तो कोई भी है, चाहे महारथी है, चाहे बीच वाला है, पुरूषार्थ में कोई न कोई कमी को परिवर्तन कर ही रहे हैं। इसलिए सी फादर, सी डबल फादर, ब्रह्मा बाप को देखो, शिव बाप को देखो। जब बाप ने आपको अपने दिलतख्त पर बिठाया है और आपने भी अपने दिलतख्त पर बाप को बिठाया है, आपका स्लोगन भी है सी फादर। सी सिस्टर, सी ब्रदर यह स्लोगन है ही नहीं। कुछ न कुछ कमी सबमें अभी रही हुई है लेकिन अगर दूसरे को देखना है तो विशेषता देखो, जो कमी वह निकाल रहे हैं अपने से, उसको नहीं देखो। दूसरी बात - तो अपने राज्य में, याद है ना अपना राज्य। कल तो था और कल फिर होने वाला है। आपकी बुद्धि में, नयनों में अपना राज्य स्पष्ट आ गया ना। कितने बार राज्य किया है? गिनती किया है? अनेक बार राज्य किया है। कहने से ही सामने आ जाता है। अपना राज्य अधिकारी रूप और श्रेष्ठ राज्य, तो जैसे अपने राज्य में लॉ एण्ड आर्डर स्वत: ही चलता है। सब नॉलेजफुल संस्कार वाले हैं, जानते हैं लॉ क्या है, आर्डर क्या है, ऐसे अभी अपने जीवन में देखो, बाप के आर्डर में चलते हो या कभी माया का भी आर्डर चल जाता है? कभी परमत, मनमत, श्रीमत के सिवाए चलता तो नहीं? और लॉ क्या है? लॉ है बेफिकर बादशाह, कोई फिकर नहीं क्योंकि सर्व प्राप्तियां हैं। ऐसे ही चेक करो संगम के श्रेष्ठ जन्म में भी सर्व प्राप्तियां हैं जो बाप ने दी है, यह भगवान का जैसे प्रसाद होता है ना, तो प्रसाद का कितना महत्व रखते हैं। तो बाप की जो भी प्राप्तियां हैं, वह प्रभु प्रसाद प्राप्त है, प्रभु प्रसाद का महत्व है! वर्सा भी है, अधिकार भी है और प्रसाद भी है। तो चेक करो - लॉ और आर्डर दोनों में सम्पन्न हैं?

बापदादा देख रहे थे कि एक बात की मैजारिटी को समय पर जो शक्ति मिली है परिवर्तन करने की, वह परिवर्तन शक्ति समय पर कार्य में लगायें तो कोई मेहनत नहीं। देखो, सभी को अनुभव है कि अगर कभी भी, किसी भी प्रकार की हार होती है, माया से तो सभी भाषण में कहते हो, क्लास भी कराते हो तो यही कहते हो कि दो शब्द गिराने वाले भी हैं, चढ़ाने वाले भी हैं, वह दो शब्द जानते हैं, सबके मन में आ गया है। वह दो शब्द है मैं, मेरा। भाषण में कहते हो ना, क्लास भी कराते हो ना। बापदादा क्लास भी सुनते हैं, क्या कहते हैं? अभी इन दो शब्दों को परिवर्तन शक्ति द्वारा जब भी मैं शब्द बोलो तो मैं फलानी या फलाना, या ब्राह्मण हूँ लेकिन मैं कौन? जो बापदादा ने स्वमान दिये हैं, जब भी मैं शब्द बोलो तो कोई न कोई स्वमान साथ में बोलो, यानी बुद्धि में लाओ। मैं शब्द बोला और स्वमान याद आ जाये। मेरा शब्द बोला बाबा याद आ जाये। मेरा बाबा। यह नैचुरल स्मृति हो जाए, यह परिवर्तन कर लो बस। और दूसरी बात बहुत करके जब सम्बन्ध सम्पर्क में आते हो तो दो शब्द द्वारा माया आती है, एक भाव और दूसरी भावना। तो जब भी भाव शब्द बोलते हो सोचते हो तो आत्मिक भाव, भाव शब्द बोलते ही आत्मिक भाव पहले याद आवे और भावना तो शुभ भावना याद आये। शब्द का अर्थ परिवर्तन कर लो। आपका टाइटिल क्या है? विश्व परिवर्तक। विश्व परिवर्तक क्या यह शब्द परिवर्तन नहीं कर सकते? तो समय पर परिवर्तन शक्ति को यूज़ करके देखो। पीछे आता है, जब बीत जाता है और मन को अच्छा नहीं लगता है, खुद ही अपना मन सोचता है लेकिन समय तो बीत चुका ना। इसलिए अब तीव्रगति की आवश्यकता है, कभी कभी नहीं। ऐसे नहीं सोचो बहुत समय तो ठीक रहता हूँ लेकिन बापदादा ने सुना दिया है कि अन्तिम घड़ी का कोई भरोसा नहीं। अचानक के खेल होने हैं। कई बच्चे बाप को भी बहुत मीठी-मीठी बातें सुनाते हैं, कहते हैं समय थोड़ा और अति में जायेगा ना, तो वैराग्य तो होगा, तो वैराग्य के समय आपेही रफ्तार तेज हो जायेगी। लेकिन बापदादा ने कह दिया है कि बहुत समय का पुरूषार्थ चाहिए। अगर थोड़े समय का पुरूषार्थ होगा तो प्रालब्ध भी थोड़े समय की मिलेगी, फुल 21 जन्म की प्रालब्ध नहीं बनेगी। तीन शब्द बापदादा के सदा याद रखो - एक अचानक, दूसरा एवररेडी और तीसरा बहुतकाल। यह तीनों शब्द सदा बुद्धि में रखो। कब और कहाँ भी किसकी भी अन्तिम काल हो सकता है। अभी अभी देखो कितने ब्राह्मण जा रहे हैं, उन्हों को पता था क्या, इसीलिए बहुतकाल के पुरूषार्थ से फुल 21 जन्म का वर्सा प्राप्त करना ही है, यह तीव्र पुरूषार्थ स्मृति में रखो। फर्स्ट नम्बर, फर्स्ट जन्म, अपने राज्य का। क्या सोचा है? फर्स्ट जन्म में आना है ना। मजा किसमें होगा? फर्स्ट जन्म में या कोई में भी?जो समझता है कि अपने राज्य के फर्स्ट जन्म में श्रीकृष्ण के साथ-साथ हमारा भी पार्ट हो, वह हाथ उठाओ। अच्छा पार्ट फर्स्ट में? हाथ देख करके तो खुश हो गये। ताली बजाओ। लेकिन फर्स्ट जन्म में आओ उसकी मुबारक है। लेकिन कहें क्या... नहीं कहें, आना ही है फर्स्ट, फिर दूसरी बात क्यों कहें। अच्छा है, जितने भी आये हैं फर्स्ट जन्म में आना ही है। ताली तो बजा दी, फर्स्ट जन्म और फर्स्ट स्टेज भी। तो फर्स्ट स्टेज बनानी ही है, यह जिसका दृढ़ संकल्प है, फास्ट जाना ही है, चाहे कुछ भी विघ्न हो लेकिन विघ्न, विघ्न नहीं रहे, विघ्न विनाशक के आगे विजय का रूप बदल जाये क्योंकि आप सभी विघ्न विनाशक हो। टाइटिल क्या है? विघ्न विनाशक। तो आवे भी, खेल खेलने आयेगा लेकिन आप दूर से ही जान जाओ, रॉयल रूप में आयेगा लेकिन आप विघ्न विनाशक दूर से ही जान जायेंगे कि यह क्या खेल हो रहा है, इसलिए बापदादा भी यही चाहते हैं कि सब बच्चे साथ चलें। पीछे नहीं रहे। बापदादा को बच्चों के बिना मजा नहीं आता है। तो दृढ़ता को कभी भी कमज़ोर नहीं करना। करना ही है। गे गे नहीं करना, करेंगे देखेंगे, हो जायेगा...देख लेना, यह बातें नहीं करना। दृढ़ता सफलता की चाबी है, इस चाबी को कभी भी गंवाना नहीं। माया भी चतुर है ना, वह चाबी को ढूंढ लेती है, इसलिए इस चाबी को अच्छी तरह से सम्भालके रखो।

तो अभी चेक करना - अपने राज्य के संस्कार अभी से धारण करने ही हैं। गे गे नहीं करना, एक गे गे, दूसरा तो तो कहते हो..यह शब्द ब्राह्मण डिक्शनरी से निकाल दो। चलो, कोई की भी कोई कमज़ोरी देखते भी हो, पुरूषार्थी तो सब हैं, नहीं तो ब्राह्मण जीवन से चले जाते, पुरूषार्थी हैं तब तो ब्राह्मण जीवन में चल रहे हैं ना, मानो कई ऐसे कहते हैं मैं तो बिल्कुल ठीक हूँ लेकिन दूसरे करते हैं ना तो वह सामने विघ्न बन जाता है। यह नहीं करे ना, यह बदले ना, लेकिन बाप ने पहले से ही स्लोगन दिया है, हमको बदलके उनको बदलाना है। मुझे बदलना है। वह बदले तो मैं बदलूं, नहीं। सुनाया भाव और भावना को चेंज करो। भाव आत्मा का, और भावना, शुभ भावना। आप करके देखो, थक नहीं जाओ। शुभ भावना बहुत रखके देखी, बदलता नहीं है, बदलना ही नहीं है। आप ब्राह्मणों के मुख से यह श्ब्द बोलना, बदलना नहीं है तो क्या यह वरदान हुआ। ब्राह्मण क्या वरदान देते हैं। जो सहारा दे सको, सहारा दो शुभ भावना का, नहीं तो किनारा करो। दिल में नहीं रखो। शुभ भावना की दुआ दो, और शब्द नहीं दो। एक यह करते हैं, दूसरा, दूसरा शब्द बतायें क्या कहते हैं? क्योंकि आज बापदादा ने अच्छी तरह से चेंकिग की, दूसरा क्या करते हैं? यह तो चलता ही है, यह भी तो करता है ना, तो मैंने किया तो क्या हुआ। वह कुएं में गिर रहा है और आप भी गिरके देख रहे हो क्या यह समझदारी है! अभी एक बात 18 जनवरी तक बापदादा पुरूषार्थ के लिए होमवर्क दे रहा है - करेंगे? करेंगे, हाथ उठाओ। कुछ भी हो जाए, बदलना पड़े, समाना पड़े, किनारा करना पड़े, लेकिन बदलेंगे। हाथ उठाया। पक्का? कि कहेंगे मैंने बहुत कोशिश की, नहीं हुआ, यह जवाब नहीं देना क्योंकि अभी अचानक के खेल बहुत होने हैं। और बापदादा चाहता है एक बच्चा भी पीछे नहीं रह जाए, साथ चले। इसलिए एक तो अगर कोई नहीं बदलता है, शुभ भावना रखी और कोई नहीं बदलता है तो आप अपने को बदलो, उसने यह कहा, उसने यह किया इसीलिए मुझे भी करना पड़ा, यह नहीं। करते सिखाने के भाव से हो, लेकिन देखते कमी को हो। इसीलिए भाव और भावना आत्मिक भाव, शुभ भावना। और यह शब्द यह तो होता ही रहता है, यह तो करते ही हैं ना, चल ही रहा है ना तो मैंने किया तो क्या हुआ... तो क्या बाप जब चलेंगे तो आप कहेंगे यह भी रह रहे हैं ना, मैं भी रह जाता हूँ, इसमें क्या है। तो सी फादर, और भाव और भावना दोनों का परिवर्तन। जब 5 तत्वों के प्रति आप शुभ भावना रखते हो और ब्राह्मण परिवार के प्रति शुभ भावना नहीं रख सकते, यह तो होता ही है, यह तो चलता ही है, यह शब्द समाप्त करो। मुझे बदलके दिखाना है। मैं बदलूंगा, और भी बदलेगा, अवश्य बदलेगा। इस निश्चय और शुभ भावना से चलो फिर देखो जल्दी जल्दी अपना राज्य आ जायेगा। तो यह 18 तारीख को दो बातें सदा के लिए धारण कर ली, यह बापदादा नहीं कहता है कि लिखकर सिर्फ भेजो, प्रतिज्ञा करने की फाइल लिखत वाले बापदादा के पास बहुत फाइल पड़े हैं वतन में। प्रतिज्ञा नहीं, दृढ़ता का संकल्प के रूप में यह दो बातें धारण करनी हैं। ठीक है टीचर्स? करनी है ना। अच्छा। मातायें हाथ उठाओ, करेंगी? बड़ा हाथ उठाओ। पाण्डव हाथ उठाओ। पाण्डव। पाण्डव भी उठा रहे हैं, ठीक है। बापदादा तो रोज़ देखता रहेगा। बापदादा को देखने में देरी नहीं लगती है। ठीक है ना। अच्छा।

टीचर्स जो भी आई हैं, मुरली तो सबके पास जायेगी, ऐसे नहीं सिर्फ जो आये हो, उनके लिए ही है, देश विदेश दोनों बच्चों, सर्व बच्चों के प्रति है। अभी बहुत आप लोगों का काम बढ़ना है। यह नहीं सेवा कर ली, भाषण कर ली, वर्ग को चला लिया। नहीं बहुत सेवा रही हुई है। अभी तो मन्सा द्वारा सकाश देने का काम करना है। जैसे शुरू-शुरू में शिव बाप ब्रह्मा में प्रवेश हुआ तो घर बैठे कैसे सकाश दी। किसको साक्षात्कार हुआ, किसको आवाज आया फलाने स्थान पर जाओ, किसे प्रेरणा आई सुन करके मुझे जाना ही है, भाग कर आई ना और जो शुरू में आये वह कितने पक्के हैं। याद करते हो ना, दादी को, दूसरी भी दादियों को याद करते हो ना। तो जो शुरू में हुआ वह अभी अन्त में भी रिपीट होना है। इसलिए अपनी मन्सा शक्ति को मन्सा सेवा को बढ़ाओ। उस समय भाषण आपका कोई नहीं सुनेगा, कोर्स कोई नहीं करेगा, हालतें ही गम्भीर होंगी। मन्सा सकाश देने की सेवा करनी पड़ेगी। इसीलिए अभी अभ्यास करो। अमृतवेले सिर्फ नहीं, भले कर्म कर रहे हो लेकिन बीच-बीच में माइण्ड को कन्ट्रोल करके सब तरफ से, एकाग्र हो करके सकाश दे सकता हूँ या नहीं दे सकता हूँ, इसकी ट्रायल करो। बहुत आवश्यकता होगी, आखिर दुख हर्ता सुख कर्ता आपके चित्र भी बनते हैं। तो क्या चैतन्य में नहीं बनेंगे? अन्तर्मुखी होके बीच बीच में 5 मिनट निकालो। अमृतवेला सिर्फ नहीं है, दिन रात यह अभ्यास चाहिए। रात को आंख खुलती है ट्रायल करो, फिर जाके भले सो जाओ। लेकिन थोड़ा टाइम ट्रायल करो और काम के लिए भी तो उठते हो ना। तो यह अभ्यास भी करो। तभी आपकी पूजा होगी। नहीं तो आपकी पूजा नाममात्र होगी। बड़े-बड़े मन्दिर नहीं बनेंगे, चालू मन्दिर बनेंगे। सुना। अच्छा।

अभी बापदादा का समाचार तो सुना, आज अच्छी तरह से चेक किया। चेक करने में बापदादा को टाइम नहीं लगता है। अच्छा। अभी अभी अपने मन को एकाग्र कर सकते हो? कर सकते हो कि विचार आयेगा टाइम हो गया है, थक गये हैं, खाने की भूख लग रही है, नहीं। नहीं, ऐसे बापदादा जानते हैं, बाप से स्नेह बहुत है बच्चों का। यह सर्टीफिकेट स्नेह का बापदादा भी देता है, आप अभी जो सभी आये हैं वह किस विमान में आये हो? आपको पता है भले ट्रेन में आये हो, या प्लेन से आये हो लेकिन आप लोग एक विचित्र विमान से आये हो, वह पता है, वह है स्नेह का विमान। स्नेह के विमान से आये हो ना। चाहे ट्रेन हो चाहे कुछ भी हो लेकिन बाप से स्नेह है इसीलिए आये हो। अभी सिर्फ जिस समय थोड़ा बहुत आता है ना, माया का खेल होता है उस समय बाप के स्नेह में खो जाओ, दिखाई नहीं दो माया को। बापदादा ने शुरू-शुरू में ट्रांस द्वारा बहुत नजारे दिखाये थे कि अन्तिम समय जब कोई हलचल होगी सब वृत्तियां बाहर आयेंगी, खराब वृत्तियां भी तो सहारा देने की वृत्तियां भी। तो बापदादा ने शुरू-शुरू में बच्चों को दिखाया था कि कई बुरी दृष्टि वाले पीछे आते हैं लेकिन उन्हों को लाइट ही दिखाई देती है। मनुष्य दिखाई नहीं देता लाइट ही दिखाई देती, फरिश्ता रूप ही दिखाई देता। ऐसे आपका एकाग्रता का अभ्यास होते भी आप ऐसे सामने बैठे हो लेकिन उनको दिखाई नहीं देगा। लाइट लाइट ही दिखाई देगी। ऐसे होना है। लेकिन अभ्यास अब से करो। फरिश्ता। अच्छा। अभी तीन मिनट मन की एकाग्रता का अभ्यास करो। यह ड्रिल करो। अच्छा।

सेवा का टर्न भोपाल जोन का है:- अच्छा भोपाल वाले भी अच्छी संख्या में पहुंच गये हैं। अभी भोपाल वालों ने नवीनता क्या सोची? जो कर चुके वह तो सभी कर ही रहे हैं। लेकिन नवीनता क्या करेंगे? बापदादा ने अगले टर्न में भी कहा कि अभी वी.आई.पीज की सेवा तो की है, सभी जोन ने की है, सभी वर्गो ने की है, लेकिन अभी बापदादा सम्बन्ध में आने वाले वी.आई.पीज जो माइक बनकर औरों को अपने आवाज से परिवर्तन करें, उन्हों को नजदीक लाओ। 6 मास में 12 मास में एक बारी आये या 4-5 बारी आये, भाषण भी किया, सम्बन्ध-सम्पर्क में भी आये, लेकिन ऐसे माइक जिनकी आवाज से अनेकों का कल्याण हो जाए, उन्हों को वारिस क्वालिटी बनाओ। नामीग्रामी भी हो। लेकिन आजकल के लोग जो हैं बाहरमुखी हैं ना, तो वह बाहर का शो भी देखने चाहते हैं, तो कोई ऐसा प्लैन बनाओ जो लगातार चलता रहे और ऐसी वारिस क्वालिटी निकालो, क्योंकि वर्गीकरण शुरू हुए भी कितना वर्ष हो गया!हो गया है ना! तो अभी उन्हों को इतना नजदीक लाओ जो वारिस क्वालिटी हो। अभी वी.आई.पी की लाइन में हैं, सहयोगी हैं, सेवा भी करते हैं लेकिन वारिस क्वालिटी नहीं हैं। तो ऐसा सहयोगी बनें, जो जिस समय जो कार्य करने की आवश्यकता है, जो उनकी क्वालिफिकेशन है, उस क्लालिफिकेशन के कार्य में हाँ जी, हाँ जी करें। कनेक्शन अच्छे जोड़े हैं, बापदादा इस बात में खुश है लेकिन अभी वह भी एवररेडी सेवाधारी बनें। ऐसी क्वालिटी वाले सभी वर्ग वाले इकट्ठे करो, बापदादा के पास ले आना है, यह नहीं। लेकिन किसी भी स्थान पर उन्हों का संगठन इकठ्ठा करो। कहाँ भी करो, जहाँ सभी को थोड़ा आने में सहज हो सके, और उनका स्पेशल कोई न कोई प्रोग्राम रखते रहो। प्रोग्राम होता है तो जाते हो, मिलते हो, सहयोग भी देते हैं लेकिन थोड़ा होमली बन जाएं, जो समय पर सहयोगी बन सकें। शुरू शुरू में भोपाल वालों ने सर्विस की है, वी.आई.पीज के कनेक्शन बनाये हैं, लेकिन अभी इसी विधि की सर्विस करके दिखाओ। ब्राह्मण तो बन रहे हैं, अभी सभी क्लास में ब्राह्मणों की वृद्धि हो रही है, यह तो अच्छा है। क्लासेज सब अच्छे हैं लेकिन अभी ऐसे व्यक्ति, सर्विसएबुल निकलें जिसकी आवाज वा परिचय सुनके सेवा हो जाए और समय पर वह रेडी रहे। कर सकते हो, अभी करके दिखाओ। लिस्ट तो देते हैं कि इतने वी.आई.पी हैं लेकिन संगठन इकठ्ठा करेंगे तो होंगे! वह संगठन भी दिखाई दे, एक दो को देख करके भी उमंग आता है, सोचते हैं, यह भी आते हैं, यह भी आते हैं... उमंग आता है। तो अभी जो भी जोन आते हैं, वर्ग भी आते हैं, अभी पहले थोड़े मुख्य-मुख्य स्थान के इकट्ठे करो सिर्फ मधुबन में इकट्ठे हों नहीं, किसी भी स्थान पर इकट्ठे करके उन्हों को स्नेह और सहयोग में और आगे बढ़ाओ। क्या करेंगी टीचर्स? टीचर्स करके दिखायेंगी ना! क्या नहीं कर सकते हो। एक एक चाहे छोटी हो, चाहे बड़ी हो, अगर दृढ़ संकल्प हो तो छोटी भी कमाल कर सकती है। सिर्फ दृढ़ संकल्प हो, करना ही है। अभिमान से आगे नहीं बढ़ना है लेकिन स्वमान से आगे बढ़ना है। बापदादा जिस भी बच्चे को जिस भी जोन को देखते हैं तो उसी दृष्टि से देखते हैं कि यह हर एक बच्चा होवनहार है। कोई नये बच्चे भी अन्दर ही अन्दर सेवा की बहुत अच्छी कमाल कर रहे हैं, बापदादा के पास समाचार भले नहीं आये लेकिन बापदादा जानते हैं। तो कमाल करके दिखाना, शुरू में बहुत अच्छी सेवा की, आरम्भ किया था, बापदादा को याद है, अब कोई कमाल करके दिखाओ। करेंगे ना, करेंगे? अच्छा है। संख्या तो बढ़ रही है लेकिन अभी क्वालिटी बढ़ाओ। अच्छा।

सेवा का गोल्डन चांस तो हर ज़ोन को बहुत अच्छा मिलता है। बाप भी खुश हो जाते और आप सब भी खुशी से चांस लेते हो। अच्छा है बापदादा खुश है, वृद्धि को देखके खुश है।

एज्युकेशन और एडमिनिस्ट्रेटर विंग:- (शिक्षा एवं प्रशासक वर्ग):  अच्छा है, एज्युकेशन के लिए गवर्मेन्ट भी समझती है, कि जीवन के लिए एज्युकेशन आवश्यक है और आजकल मैजारिटी समझने लगी है कि एज्युकेशन में स्प्रीचुअल्टी जरूरी है। अभी वायुमण्डल चेंज हो गया है। पहले कहते थे यह तो बड़े बूढ़ों का काम है स्प्रीचुअल बनना। अभी समझते हैं कि एज्युकेशन में अगर आध्यात्मिकता नहीं है तो परिवर्तन नहीं हो सकता है। इसीलिए अभी दुनिया का इम्प्रेशन बदलता जा रहा है। इसीलिए जहाँ तक हो सके हर एक शहर वाले छोटे बड़े स्कूल कालेजेस या भिन्न-भिन्न एज्युकेशन जहाँ भी चलती हैं, उसमें ट्रायल करके वहाँ अपना पार्ट लो। कई बच्चे, अपने माँ बाप को बदल सकते हैं। स्कूलों में हर एक स्थान में सेवा होनी चाहिए, स्कूल के कारण टीचर्स और माँ बाप दोनों ही आपके कनेक्शन में आ जायेंगे। आज बच्चे प्राब्लम है और बच्चे की चलन में माँ बाप वा टीचर थोड़ा भी फर्क देखते हैं तो वह समझते हैं कि यह बहुत अच्छी बात है। तो कहाँ-कहाँ तो करते हैं लेकिन सब तरफ होना चाहिए। किसी को भी अगर सहयोग चाहिए, भाषण करने वाले का या प्रोग्राम बनाने का, तो एक दो से मदद ले सकते हो। और आप डिपार्टमेंट चेक करो, कहाँ-कहाँ हो सकता है, कहाँ कोई मदद दे सकते हैं, करा सकते हैं, थोड़ा फैलाओ। कहाँ कहाँ फैलाते हैं, लेकिन चारों ओर गांव में भी फैलाओ। कोई कोई गांव में तो फैला रहे हैं। एज्युकेशन डिपार्टमेंट बहुत कुछ कर सकता है। दुनिया की रीति से भी अगर बच्चे एज्युकेट बनते हैं तो दुनिया को भी फायदा है और आप लोगों का भी पुण्य इकठ्ठा हो जायेगा। अच्छा है, कर भी रहे हो, बापदादा सुनते हैं लेकिन चारों ओर आवाज फैले कि ब्रह्माकुमारियों की आध्यात्मिक नॉलेज जरूरी है, यह आवाज फैले। आवाज फैलाने वाला ग्रुप तैयार करो। जो भी वर्ग बनाये हैं, सभी वर्ग अपनी-अपनी रीति से आवश्यक हैं। आवाज फैला सकते हैं। जहाँ भी जायें, एज्युकेशन में जाये, डाक्टरी में जायें, मिनस्ट्री में जायें, कहाँ भी जाये, किस भी वर्ग में जायें तो यह आवाज सुनें कि इस वर्ग में भी आवश्यक है, इस वर्ग में भी आवश्यक है, ऐसे आवाज फैल जाये। थोड़ा थोड़ा अभी शुरू हुआ है कि ब्रह्माकुमारियां जो कर सकती हैं वह और कोई नहीं कर सकता है, थोड़ा फैला है। मैनेजमेंट के लिए भी अभी समझते हैं कि ब्रह्माकुमारियां जो मैनेजमेंट करती हैं वह और कोई नहीं कर सकता, ऐसे हर वर्ग हर स्थान में यह आवाज फैलाओ। जहाँ भी जाएं वहाँ यही सुनें कि ब्रह्माकुमारियों का कार्य अच्छा है, तभी तो अच्छा बनेंगे। अच्छा है। बाकी जो कर रहे हो वह अच्छा कर रहे हो आगे और अच्छा करते चलो, फैलाते चलो। अच्छा।

डबल विदेशी:- सभी डबल विदेशी उठो, यूथ भी उठो। आप सबकी तरफ से डबल पुरूषार्थी बच्चों को मुबारक दे रहे हैं। आप सभी मधुबन के श्रृंगार बन जाते हो। तो मधुबन के श्रृंगार को मुबारक हो, मुबारक हो, मुबारक हो। अभी सभी ने यह संकल्प अच्छा किया है जो हर टर्न में कोई न कोई हाजिर होता है। बापदादा खुश होते हैं। अभी पहले-पहले कोई भी प्रोग्राम बड़ा होता था किसी भी देश में तो पहले स्टेज पर वी.आई.पी विदेश के आते थे, अभी स्पीकर वी.आई.पी नहीं आते हैं, ब्राह्मण आते हैं वह तो खुशी की बात है, अपने घर का श्रृंगार आता है। लेकिन बापदादा ने सुना तो प्रोग्राम बनाया है, विदेशी देश में आके सेवा करें, बनाया है ना! यह सामने खड़ा है ना, (निजार भाई) प्लैन बनाया है? अच्छा किया है क्योंकि शुरू शुरू में बापदादा के महावाक्य हैं कि विदेश वाले इन्डिया के कुम्भकरण को जगायेंगे। तो अभी यह भी कोशिश करो, कि जो भी बड़े प्रोग्राम होते हैं, उसमें स्पीकर भी आने चाहिए। वी.आई भी। तो अच्छा प्लैन बनाया है। अपने ब्राह्मण तो आते हैं लेकिन वी.आई. पी अपना अनुभव आके सुनाये - हमको क्या मिला है। यह भी हो जायेगा। अभी कनेक्शन में तो बहुत हैं।

बाकी डबल पुरूषार्थी हैं ना। जो समझते हैं कि हम डबल पुरूषार्थी हैं, वह हाथ उठाओ। डबल पुरूषार्थी! डबल!डबल पुरूषार्थी? मैजारिटी तो उठा रही है, कोई-कोई नहीं उठा रहा है। तो ढीला नहीं करना इसको। अभी डबल पुरूषार्थी का टाइटल मिला है ना। फिर आपको टाइटिल मिलेगा, फरिश्ता पुरूषार्थी क्योंकि जैसे आते हो, तो फ्लाय करके आते हो ना! ऐसे ही स्थिति में भी फरिश्ता अर्थात् उड़ती कला वाले। चढ़ती कला, चलती कला नहीं, उड़ती कला। अटेन्शन है, सेवा भी बढ़ रही है। अभी ऐसा ग्रुप बनाओ जो सदा एकरस एकाग्र रहे, कभी कभी शब्द नहीं आवे। सदा शब्द हो, ऐसा ग्रुप बनाओ। सदा शब्द इतना पक्का हो, जो कभी-कभी क्या होता है, उस पुरूषार्थ में अन्जान हो जाए। चलते फिरते सदा शब्द प्रैक्टिकल हो, हर सबजेक्ट में। ऐसा ग्रुप विदेश में भी बना सकते हैं, देश में भी बना सकते हैं। रेस करो, चाहे छोटा ग्रुप बने, बड़ा ग्रुप बने, लेकिन कहाँ भी ऐसा ग्रुप बनाके दिखाओ। बनायेंगे! डबल पुरूषार्थी बच्चों की आदत है - जो सोचते हैं वह करके दिखाते हैं। तो यह करके दिखाओ। है हिम्मत? हिम्मत है? टीचर बताओ। जनक बताओ, है? अभी सोच रहे हैं। सोचो। भले सोचो, ट्रायल करो और फिर सभी के तरफ से बापदादा उस ग्रुप को सौगात देंगे। कोई भी बनाये, चाहे देश, चाहे विदेश, सदा नो प्राबलम का आवाज हो। अच्छा।

अच्छा - चारों ओर के बच्चों की यादप्यार जो भिन्न-भिन्न भेजते रहते हैं, वह बापदादा को जरूर मिलती है और बापदादा भी उन बच्चों को दिल में समाते हुए समीप इमर्ज करते हैं। आजकल कई बच्चे अपने अपने पिछले जन्मों के हिसाब-किताब चुक्तू करने में लगे हुए हैं। उन्हों का भी यादप्यार बापदादा के पास पहुंचता है। जैसे अंकल, (अंकल स्टीवनारायण) फर्स्ट वी.आई.पी निमित्त बना। तो बापदादा और सर्व परिवार जो जानते हैं, उनकी सकाश अवश्य बच्चे तक पहुंचती है। सभी अपने दिल की याद दे रहे हैं। ऐसे ही कई बच्चे बाबा बाबा कहके अपना हिसाब किताब चुक्तू कर भी रहे हैं और सकाश लेते हुए चल भी रहे हैं। तो जो भी देश में या विदेश में शरीर का हिसाब चुक्तू कर रहे हैं, उन सब विशेष बच्चों को बापदादा का प्यार दुआयें, सदा मिल रही हैं और मिलती रहेंगी। साथ-साथ चारों ओर के पत्र, आजकल तो पत्रों से भी फास्ट साधन निकल गये हैं, तो जिन्होंने भी याद भेजी है, उन सब बच्चों को एक एक को नाम और उनकी विशेषताओं सहित बापदादा यादप्यार दे रहे हैं। साथ साथ बांधेली गोपिकायें उन्हों के भी दिल के आवाज बहुत आते हैं लेकिन बापदादा ऐसे लवली बच्चों को याद करते हैं कि कमाल है, बंधन में रहते भी दिल से ब्रंधनमुक्त हैं। अपनी कमाई गुप्त रूप में भी कड़े बंधन में भी कर रही हैं, वह सोते हैं, यह कमाई करती हैं। यह बांधेलियों के चरित्र विचित्र होते हैं। बापदादा चारों ओर के ऐसे बंधन वाली सच्ची गोपिकाओं को भी यादप्यार दे रहे हैं। उन्हों का स्पेशल टाइम होता है और बापदादा उसी टाइम पर उन्हों को किरणें देते हैं। अच्छा।

चारों ओर के लवली और लक्की दृढ़ संकल्प वाले बच्चों को सोचा और किया, करेंगे, देखेंगे नहीं, सोचा और किया, सदा अपने को नष्टोमोहा में, सिर्फ संबंध का मोह नहीं, अपने देहभान और देह अभिमान का भी मोह नहीं। ऐसे नष्टोमोहा एवररेडी बच्चों को सदा श्रीमत में हाथ में हाथ देते, साथ उड़ने वाले और साथ में ब्रह्मा बाप के साथ अपने राज्य में आने वाले ऐसे तीव्र पुरूषार्थी उड़ती कला वाले बच्चों को बापदादा का बहुत-बहुत दुआयें और यादप्यार स्वीकार हो और बालक सो मालिक बच्चों को नमस्ते।

दादियों से:-(दादी जानकी वा मोहिनी बहन ने बापदादा को भाकी पहनी) निमित्त यह दो बनी लेकिन सबको भाकी पड़ गई।

शान्तामणि दादी:- अच्छा है भले बेड पर हो लेकन सबके दिल में याद हो क्योंकि आदि रत्न हो ना। आदि रत्न अमूल्य रत्न हैं गिनती के रत्न हैं। सभी को दादियां बहुत याद हैं ना।

ग्राम विकास प्रभाग की ओर से पूरे गुजरात में 18 दिसम्बर से 29 दिसम्बर 2008 तक ‘‘शास्वत यौगिक खेती जागृति अभियान’’ निकाल रहे हैं जिसकी लाचिंग का कार्यक्रम कल नदी पर रखा था: -

बापदादा ने समाचार सुना कि गांव की सेवा करने वाले बहुत अच्छा प्रत्यक्ष स्वरूप दिखा रहे हैं। खेती में जो भिन्न-भिन्न प्रकार की खाद डालते हैं, वह खाद न डाल कर योगबल से, बिना खाद डाले फल या सब्जी बहुत अच्छी बनाते हैं और प्रैक्टिकल ट्रायल करके दिखाई है और प्रैक्टिकल में चेक भी कराया है। तो जो योग से फल या फूल या अनाज़ पैदा होता है, वह बीमारियां नहीं पैदा करता है। बीमारियों के कीटाणु खत्म हो जाते हैं योगबल से। तो यह प्रैक्टिकल सबूत कई जगहों पर दिखाया है और जो निमित्त वी.आई. पी हैं, उन्होंने भी माना है कि योगबल से अगर कोशिश करें तो यह वृद्धि को प्राप्त हो सकता है, तो यह बहुत अच्छा प्रत्यक्ष सबूत है, तो प्रत्यक्ष सबूत देख करके सब मानने के लिए तैयार हो ही जाते हैं। तो यह भी ब्राह्मण परिवार की अच्छी सबूत दिखाने वाली सेवा है। कई स्थानों में किया है ना। वह आये हुए हैं, कहाँ हैं गांव सेवा वाले। ग्राम विकास वाले उठो।

यहाँ आबू में भी ऐसी खेती कर रहे हैं। तो खेती से क्या निकाला? अभी क्या तैयार किया है? (अभी पपीता निकाला है, चना और मटर तैयार हो रहे हैं) तो अच्छा है ना। अपनी भी कमाई हुई, योग किया। चाहे किसी भी कारण से लगातार योग किया होगा ना! तो अपना भी फायदा और लोगों का भी फायदा। अच्छी बात है। प्रैक्टिकल कभी क्लास में दिखाना, जो भी निकला है, (पपीता वा चना) वह सबको दिखाना। अच्छा है अगर ऐसे ही आवाज फैलता जायेगा तो बुलाने के बिना ही सब आयेंगे। निमन्त्रण छपाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। मुबारक हो, बहुत अच्छी सेवा है।

18 जनवरी तक के लिए विशेष होमवर्क

1) अव्यक्ति पालना और व्यक्त रूप की पालना का रिटर्न रायल आलस्य और अलबेलेपन से मुक्त बनो।

2) दूसरों को बदलने की वृत्ति का परिवर्तन कर स्वयं को परिवर्तन करो। आत्मिक भाव और शुभ भावना को धारण करो।

3) दूसरों की कमियों को देखने के बजाए विशेषता देखो सी डबल फादर।